मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

जीवन-मंत्र

वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|
बना रहे हथियार मुझे क्यों अपनो से ही लड़ने का|

जिनने अपनाया मुझको वे सबकुछ अपना भूल गए,
मात्रु -भूमि पर जिए-मरे हंस-हंस फंसी पर झूल गए|
वीर शिवा,राणा,हमीद लक्ष्मीबाई से अभिमानी,
भगतसिंह,आजाद,राज,सुख औ बिस्मिल से बलिदानी|

अवसर चूक न जाना उनके पद-चिन्हों पर चलने का|
वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|

करनेवाले काम बहुत हैं व्यर्थ उलझनों को छोड़ो,
मुल्ला-पंडित तोड़ रहे हैं तुम खुद अपनों को जोड़ो|
भूख,बीमारी,बेकारी,आतंकवाद से लड़ना है,
कदम मिलाकर दुनिया से आगे ही आगे बढ़ना है|

भटक गए हैं लक्ष्य से जो अवसर दो उन्हें सुधरने का|
वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|

चंदा-तारे सुख देते पर पोषण कभी नहीं देते,
केवल धरती माँ से ही ये वृक्ष जीवन रस लेते|
जननी और जन्म-भूमि को ज़न्नत से बढ़कर मानें,
छुपे हुए गद्दारों को जितनी जल्दी हो पहचानें|

जागो-जागो यही समय है अपनीं जड़ें पकडनें का|
वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|
डा. रोहितश्याम चतुर्वेदी "शलभ"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें