डा.रोहितश्याम चतुर्वेदी"शलभ"
चश्मे को बदलकर ज़रा देखिये ज़नाब|
उतरकर तो जमीं पर ज़रा देखिये ज़नाब|
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बाबर था आततायी भला भूल गए क्यों?
चला वो लूटकर ज़रा देखिये ज़नाब|
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लूटी नहीं दौलत,मुहब्बत भी लूट ली,
तोड़ा यकीं-ऐ- घर,ज़रा देखिये ज़नाब|
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सज्दे में खुदा के तो जमीं चूमते हैं हम,
वन्देमातरम क्यों कुफ़र ज़रा सोचिये ज़नाब|
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पुरखे हमारे एक और खून एक है,
अन्दर तो झांक कर ज़रा देखिये ज़नाब|
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मसला 'शलभ' न हल हो ये हो Nहीं सकता,
नीयत को साफ कर ज़रा देखिये ज़नाब|
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