Rohitshyam Chaturvedi htp\\;www.shalabh-sanvadblogs.pots.com
जीवन देवता की साधना
मनुष्य का जीवन भगवान् की ओर से मिला एक अनुपम अदभुत एवं अमूल्य उपहार है |लेकिन जिस प्रकार से हम मुफ्त में मिली हुई वस्तुओं को महत्त्व नहीं देते,उसी प्रकार हम में से अधिकांश इस बहुमूल्य जीवन का महत्त्व भी पूरी तरह से न समझकर उसे जैसे-तैसे काट देते हैं |मनुष्य के जीवन को ऐसे ही बहुमूल्य नहीं कहा गया है, पूरी सृष्टि के प्राणियों पर नज़र दौडाइए ऐसा सुन्दर एवं उपयोगी शरीर भला है किसी के पास?उसके उपरांत बोलने, मुस्कुराने तथा सोचने-समझाने की क्षमताओं को यदि जोड़ दिया जाये तो हम किसी राजकुमार से कम नहीं हैं|लेकिन क्या हम एक राजकुमार जैसा जीवन जी रहे हैं? उत्तर हाँ में शायद ही मिले|सुबह-सवेरे चिड़िया चह -चहाते हुए,कोयल गाते-गुनगुनाते हुए, खरगोश और हिरन कुलांचे भरते हुए अपने दिन का प्रारम्भ करते हैं और प्रकृति का अनुसरण करते हुए मौज -मस्ती का जीवन जी कर आखिर में बूढ़े होकर मरते हैं|लेकिन इस पूरी दुनिया में एक ही बेवकूफ प्राणी है जिसका नाम है मनुष्य,जो रोते हुए पैदा होता है,कलपते हुए जीवन जीता है और अनेकानेक व्याधियों से ग्रस्त हो कर कराहते हुए मर जाता है| परमात्मा ने जब इस सृष्टि का निर्माण पूर्ण किया होगा तब उन्हें इसकी देख-भाल रखने वाले की आवश्यकता महसूस हुई होगी और इसी आवश्यकता ने भगवानजी को मनुष्य के आविष्कार की प्रेरणा दी होगी| अर्थात जिसे विश्व-वसुधा रूपी बाग़ का माली बना कर भेजा गया था वह मालिक बन बैठा और मालिक ही तो मनमानी करता है ना? उसकी इसी मनमानी ने न सिर्फ उसका अपना स्वास्थ्य ही बिगाड़ा वरन पृथ्वी,जल,वायु आकाश सब को प्रदूषित कर के पेड़-पौधों तक का जीना दुष्वार कर दिया है| ----क्रमश:-------
मंगलवार, 5 जनवरी 2010
शनिवार, 2 जनवरी 2010
nav-varsh ki kamana--
आशा है नव-वर्ष यह दो हजार और दस ,
कहे मुई महंगाई से बस बहन जी बस |
बस बहन जी बस,त्रस्त है जनता सारी,
नीचे उतरो ये छोटी सी अरज हमारी|
करें 'शलभ' कविराय बिनती इतनी सी बस,
भ्रष्टाचार को निगल जाये ये दो हजार दस|
कहे मुई महंगाई से बस बहन जी बस |
बस बहन जी बस,त्रस्त है जनता सारी,
नीचे उतरो ये छोटी सी अरज हमारी|
करें 'शलभ' कविराय बिनती इतनी सी बस,
भ्रष्टाचार को निगल जाये ये दो हजार दस|
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