आशा है नव-वर्ष यह दो हजार और दस ,
कहे मुई महंगाई से बस बहन जी बस |
बस बहन जी बस,त्रस्त है जनता सारी,
नीचे उतरो ये छोटी सी अरज हमारी|
करें 'शलभ' कविराय बिनती इतनी सी बस,
भ्रष्टाचार को निगल जाये ये दो हजार दस|
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