रविवार, 16 मई 2010

भारत के न्याय-तंत्र ने कसाब को फांसी की सजा सुनाकर एक बार पुन: अपनी सर्वोपरिता तो सिद्ध कर दी है,परन्तु भ्रष्टाचार,अगड़ों-पिछड़ों,तथा छद्म- धर्मनिरपेक्षता के मकड़-जालों में फंसे स्वार्थी एवं धूर्त नेताओं के रहत क्या वह शीघ्र फांसी पर चढाया जाएगा या फिर अफजल गुरु की तरह मुस्लिम-तुष्टिकरण के काम आएगा या कन्धहार कांड की पुनरावृति के| क्या कसाब को फांसी दे देने के बाद सीमा पार से आतंकवादी गति-विधियाँ समाप्त हो जाएँगी? इन यक्ष-प्रश्नों का उत्तर तो कोई धर्मराज युधिष्ठिर ही दे सकते हैं एवं फिल-हाल तो कोई युधिष्ठिर दूर-दूर तक नज़र नहीं आरहे| खैर जो भी हो,अभी तो यह फैसला पाकिस्तान तथा उसके तथा-कथित समर्थकों के गाल पर एक झन्नाटे दार थप्पड़ ही है|

राजनीति में घुस गए चाटुकार,मक्कार

मुफ्त की रोटी खा रहे देश-द्रोही गद्दार

देश-द्रोही गद्दार जेल में मौज उड़ाते

फांसी पाकर भी फांसी पर ना चढ़ पाते

कहें शलभ कविराय हमारा जागे पानी

मारो ऐसी मार की फिर ना मांगे पानी|

फांसी पर चढ़ने चला अजमल आमिर कसाब

कांधे पर ले पाप का सभी माल असबाब

सभी माल असबाब फकत यह तो है मोहरा

पीछे इसके छिपा हुआ षडयंत्र है गहरा

कहें 'शलभ'कविराय डाल ना पत्ते छांटे

पनप रही हो जहाँ कहीं उस जड़ को काटें|

फांसी पर चढ़ने चला अजमल आमिर कसाब

कांधे पर ले पाप का सभी माल-असबाब

सभी माल-असबाब फ़कत यह तो है मोहरा

पीछे इसके छिपा हुआ षड़यंत्र है गहरा

कहें शलभ कविराय कि अब तो पूरा करें हिसाब

बंजर करें ज़मीन कि जिसमें पैदा होते कसाब|

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अफ़जल को फांसी मिले कहते हैं सब लोग,

कुछ कहते हैं ना मिले बहके हैं अब लोग

बहके हैं अब लोग ये कैसा खेल चल रहा

नेताओं का वोट के खातिर मेल चल रहा

कहें 'शलभ'कविराय होती गर रानी झाँसी

कब की हो जाती अफ़जल जैसों को फांसी

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